फिर हुआ काशी में शंख नाद, जिला न्यायालय से मुस्लिम पक्ष को झटका, कौन हैं जेम्स प्रिंसेस जिनके नक्शे ने दिया हिन्दू पक्ष का साथ।

पीछले साढ़े तीन सौ साल से काशी विश्वनाथ मंदिर का मुकदमा दर्ज है, जिसपर सुनवाई तो होती हैं, लेकिन न्याय अब तक नहीं मिला, फिलहाल अयोध्या के बाद काशी और मथुरा को लेकर हिन्दू पक्ष अपना दावा ठोक रहा हैं, तमाम सबूतों को लेकर हिन्दू पक्ष का रहा हैं की, उनकी आस्था के साथ खिलावड हुआ हैं, और बरसो से वह न्याय के इंतजार में है, वही मुस्लिम पक्ष कह रहा हैं, ज्ञानवापी परिसर में मौजूद ढांचा एक हज़ार साल पुराना हैं, और मुस्लिम पक्ष प्लेस ऑफ़ वर्षिप्त अधिनियम को लेकर भी बात कर रहा हैं, लेकिन यह कानून अयोध्या, काशी, मथुरा पर लागू नहीं हो सकता यह तो पहले ही स्पष्ट हो गया हैं।

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अभी मुस्लिम पक्ष के पास केवल यह सबूत बचा है की , ज्ञानवापी परिसर में जो ढांचा हैं, वह एक हज़ार साल पुराना हैं, अब इसे गंभीरता से लेते हुए जिला न्यायालय ने ASI सर्वे की मांग को हरी झंडी दिखाकर काशी में शंख नाद किया हैं, ASI ने 2015 से पहले भी यहां सर्वे किया था, कहा पर उन्होंने कुछ सबूत पेश किए थे ,और कहा था की यह ,मंदिर होने के ज्यादा सबूत है, लेकिन फिर यह कैसे किसी न किसी बहाने रोक दिया गया।

अभी वापस यह मामला कोर्ट में हैं, जिसकी सुनवाई जिला न्यायालय में चल रही हैं, पिछले साल कुछ महिलाओ में ज्ञानवापी परिसर के तहखाने में श्रृंगार गौरी माता की पूजा को लेकर कैसे किया था, जिसका अधिकार शतकों पहले से ही काशी में रह रहे, व्यास परिवार को हैं, पीढ़ी दर पीढ़ी उनका परिवार यह पूजा कर रहा हैं, लेकिन अयोध्या आंदोलन को देखते हुए 1992 के बाद काशी में भी मंदिर के लिए आन्दोलन होने लगे , इसे देखकर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने बिना कानूनन अधिकार के शृंगार गौरी माता की पूजा बंद करने का आदेश दिया, ज्ञानवापी परिसर में हिन्दू धर्म के लोगो को प्रवेश करने से मना किया, लेकिन नमाज़ पढ़ने के लिए मुसलमानों को इजाजत दी गई, शतको से ज्ञानवापी तहखाने में माता शृंगार गौरी की पूजा करते आए व्यास परिवार को उनके धार्मिक अधिकार से मुलायम सिंह यादव ने वंचित रखा,और वहा पर एक लोहे की रेलिंग लगा दी गई, जिसके बाहर से ही व्यास परिवार पूजा अर्चना करते थे।

 

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*हालही में जिला न्यायालय ने व्यास परिवार को श्रृंगार गौरी माता की पूजा करने का अधिकार वापस दिया है, आज वहा पूरी विधी विधान के साथ पूजा हों रही हैं, लेकिन काशी विश्वनाथ/विश्वेश्वर मंदिर को लेकर आज भी मामला कोर्ट में हैं, जिसकी सुनवाई ही रही हैं, साथ ही ASI सर्वे टीम ने अपनी 800 से ज्यादा पन्नो की रिर्पोट कोर्ट को सौफ दी है, जिसके कुछ पहलू हिन्दू पक्ष के वकील श्री विष्णु जैन जी ने मीडिया के सामने प्रस्तुत किए हैं।

*इसमें एक नाम बड़ा ही सुर्खियों में रहा , जेम्स प्रिंसेस का नक्शा ,आखिर क्या है इस नक्शे में जो हिन्दू पक्ष का दावा मजबुत कर रहा हैं? आपको जैसे 

वैसे तो ASI सर्वे टीम और आईआईटी कानपुर के टेक्निकल ऑफिसर्स ने ज्ञानवापी परिसर में अपना सर्वे पूरा किया है,GPR तकनीक के जरिए भी अंडर ग्राउंड सर्वे किया गया हैं, लेकिन इन सब में ASI ने एक नक्शे की भी मदद ली ,जिसे न्यायालय में पेश किया गया, यह नक्शा बनाया हैं 200 साल पहले अंग्रेज अधिकारी जेम्स प्रिंसेस ने, जो काशी में ऑफिसर बन कर आया था।

इस नक्शे में बताया गया है, की यह पहले मंदिर था, जिसमे प्रमाण उन्होंने अपने लिखित जवाब में दिया है, जिसमे कल्याण मंडप और माता शृंगार गौरी के मंदिर का , वहा हो रही पूजा के बारे में जानकारी दी है,

 

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अब आपको बताते हैं की आखिर कौन हैं जेम्स प्रिंसेस और उनका यह नक्शा ASI की मदद कैसे कर रहा हैं?

जेम्स प्रिंसेस एक ब्रिटिश आर्किटेकचरर थे, जिन्हे पहले से ही इतिहास में रूचि थी, उन्होने 1832 में एक किताब लिखी जिसका नाम है “बनारस इलेक्टटिक्स“.

इस किताब में बनारस को काशी के नाम से जाना जाता हैं, ऐसा भी उल्लेख हैं, जो काफी पुराना नाम हैं, जेम्स ने बनारस को भारत की सांस्कृतिक विरासत कहा हैं, और राजधानी भी, यह के घाटों का वर्णन किया हैं, मणिकर्णिका से लेकर, सभी अस्सी घाटों का महत्त्व उन्हे पता था, काशी विश्वनाथ मंदिर की पूजा , से लेकर गंगा आरती ,यह के रितीरिवाज, सबकुछ उन्होने वर्णित लेकर इस किताब में लिखा हैं, महत्त्व पूर्ण बात हैं, की इसमें काशी विश्वनाथ मंदिर का उल्लेख काशी विश्वेश्वर महादेव मंदिर से भी हैं,इस पुस्तक में एक नक्शा हैं जो लिथोब्लासी तकनीक से बनाया गया हैं .

आपको बता दे की, सम्राट अशोक के शिलालेख पढ़ने वाले जेम्स प्रिंसेस खरोष्ठी और भ्रम्हि लिपि के जानकर थे, साथ ही उनको हिंदी और संस्कृत भी ज्ञात थीं,उन्होंने इन लिपियों को वहा के ग्रामीण लोगों से सीखा था, और इसी की मदद से वे सम्राट अशोक के शिलालेख पढ़ने में सफ़ल हुए,और उनके राजपाठ से लेकर व्यापार तक की सारी जानकारी प्राप्त कर ली.

वर्ष 1819 में जेम्स प्रिंसेस कलकत्ता के टकसाल अधिकारी थे, इसके बाद 1920 में वह काशी नगरी में आए,जब उन्होंने बनारस देखा तो वह इतने प्रभावित हुए की, उन्होंने यही से ही अपने बचपन के सपने को साकार करने की ठान ली, उन्हे इतिहास में रुचि थी,और वे आर्किटेक्टर बनना चाहते थे,लेकिन किसी वजह से वह यह सपना सच नही कर पाए,लेकिन जब वे भारत आए , कलकत्ता से बनारस पधारे, तो उन्हे याद आ गया की वह आर्किटेक्टोर का काम  कर सकते है, और जेम्स प्रिंसेस ने बनारस को समझना शुरू कर दिया, यहां के रिवाज, रहनसहन, खानपान, सभी उनको बहुत पसंद आया, साथ ही बनारस के विश्वेश्वर महादेव मंदिर के बारे में उन्होंने जानना चाहा,

उन्हे पता चला की बनारस दुनियां का सबसे प्राचीन शहर है,जो कभी पूरी तरीके से उजड़ा ही नई, हमेशा आबाद रहा, और एक के बाद एक पीढ़ी यहाँ निवास करने लगी,और यही से उन्होंने अपना सपना साकार करने की कसम खाई।

जेम्स प्रिंसेस ने प्राचीन गंगा नदी को आधुनिक द्वार पर लाने का काम किया,बनारस में उन्होंने एक मंडी बसाई जो आज भी हैं, जिसे विश्वेश्वर गंज किराना मंडी के नाम से जाना जाता हैं,

वैसे तो जेम्स प्रिंसेस ने कही अच्छे काम किए हैं, जैसे की सीवेज व्यवस्था प्रणाली , जिस से की गंगा में गंदा पानी , कूड़ा कचरा ना जाए, एक समय के बाद वह भी हिंदू धर्म पर आस्था करने लगे ,और गंगा आरती में भी उस्पथित रहने लगे थे,

काशी विश्वेश्वर मंदिर के अलावा उन्होंने आसपास के कई मंदिरों का उल्लेख अपने किताब में किया हैं,जैसे की गंगा मंदिर,जो माता गंगा को समर्पित है,उनके किताब में काशी विश्वनाथ/विश्वेश्वर मंदिर का वर्णन हैं,और ज्ञानवापी परिसर का भी , दिलचस्प बात यह हैं की ज्ञानवापी परिसर में आज भी स्थित श्रृंगार गौरी माता मंदिर का उल्लेख भी उनके किताब में हैं, और व्यास परिवार द्वारा पूजा और संध्या आरती होती है ऐसा भी वर्णन हैं,

जेम्स प्रिंसेस के किताब में जो नक्शा हैं उनके द्वारा कहा गया हैं की, यहां पहले भी भव्य मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई, पश्निमी दीवारों की नक्काशी को देखकर ऐसा लगता हैं की , किसी भव्य मंदिर को तोड़कर ,यह दूसरी संरचना बनाई गई हैं,मतलब की मस्जिद निर्माण किया गया है,

 

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जेम्स प्रिंसेस ने काशी विश्वनाथ/ विश्वेश्वर महादेव मंदिर का वर्णन किया हैं, वे लिखते हैं,यह विश्वेश्वर महादेव मंदिर था, जो भव्य था, इस के परिसर में और भी छोटे मंदिर थे, इसका आकार चौकोंन था,जो लगभग 124 फीट से ज्यादा  फ़ैला था, इस परिसर में भव्य मंडप था, कहा लोग पूजा करने के बाद भजन कीर्तन करते थे, धार्मिक बाते हुआ करती थी,मंदिर में एक भव्य गर्भगृह था,जिसमे एक भव्य शिवलिंग था, जिसपर एक बड़ा रत्न जड़ा था, जेम्स प्रिंसेस ने कहा हैं की , इस मंदिर प्रांगण में नौ शिखर थे। जिसे देखकर ऐसा लग रहा हैं ,की बड़ी क्रूरता से इसे नष्ट करने का प्रयास किया गया हैं।

इस किताब को हिंदू पक्ष कोर्ट में सबूत के तौर पर पेश कर रहा हैं, जिसमे स्पष्ट रूप से लिखा हैं, की यह मंदिर था, जिसे तोड़कर मस्जिद बनाई गई हैं।

ASI सर्वे टीम ने कहा हैं की, ज्ञानवापी तहखाने में कई सबूत मिले हैं, जैसे की,त्रिशूल, भगवान विष्णु देव, गणेश,माता लक्ष्मी, वराह अवतार की मूर्ति, और कही खंडित मूर्तियां मिली हैं, साथ ही कुछ शिलालेख मिले हैं, जिसमे तमिल, कन्नड़ , तेलगु,संस्कृत भाषा में मंत्र लिखावट रूप में हैं,

ASI ने अपनी रिपोर्ट अदालत में पेश की हैं, जिसे मीडिया के सामने प्रस्तुत किया गया हैं, लेकिन इस 800 पन्नो की रिपोर्ट के कुछ पहलू ही मीडिया के सामने प्रस्तुत किए गए हैं।

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