हमारे बारह फिल्म ने कैन्स फिल्म फेस्टिवल में उड़ाए सबके होश, ड्रीम गर्ल बाद अनु कपूर का नया अवतार देखते ही चौंक गई दुनियां?

इन दिनों “cannes” फिल्म फेस्टिवल काफी चर्चा में रहा,जो की फ्रांस में आयोजित किया गया था, जिसमे दुनिया भर के सितारे रेड कार्पेट पर चलते दिखे ,जिसमे ऐश्वर्या राय बच्चन, उर्वशी रौतेला, कियारा आडवाणी और नैंसी त्यागी ने अपनी अलग अंदाज से रेड कार्पेट पर लाइम लाइट बटोरी,

लेकिन इस फिल्म फेस्टिवल में एक सामाजिक फिल्म दिखाई गई जिसकी चर्चा आज हर एक जगह हो रही हैं।
यह कहानी एक ऐसे इंसान की हैं जो अपने धर्म को पूरी तरह से पालन करते हुए दिखाई देता हैं, इस फिल्म को कमल चंद्रा ने डायरेक्ट किया हैं,जिसमे बढ़ती आबादी को भी निशाना बनाया हैं।

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कैसी हैं हमारे बारह की कहानी?

वैसे तो यह फिल्म इस्लाम धर्म को लेकर बनाई गई हैं, जिसमे उनके सामाजिक जीवन को दिखाया गया हैं, साथ ही इस्लाम में।महिलाओ के अधिकार को लेकर हलेशा बवाल होता दिखा हैं, सामान्य मुसलमान परिवारों में बच्चो को लेकर उतनी जागरूकता नहीं हैं, सामान्य मुसलमान परिवारों में 2 से ज्यादा बच्चे होने की वजह से ना तो वह अच्छी शिक्षा हासिल कर पाते हैं और ना ही अच्छी जीवन जी पाते हैं, जो की इस फिल्म की नींव हैं ,कुछ ऐसी ही हैं इस फिल्म की कहानी,फिल्म में एक मुसलमान परिवार की कहानी हैं, जिसमे मौजूद महिलाओ के अधिकार को जागृत होते दिखाया हैं।

फिल्म कहानी एक मुसलमान परिवार के इर्द गिर्द घूमती हैं, जिसमे अनु कपूर ने एक व्यक्ति का किरदार निभाया हैं, जिसका नाम हैं, मंसूर अली खान संजारी हैं, पेशे से वह एक कव्वाल हैं,जिनकी आयु लगभग 60 साल हैं, और उनके 11 बच्चे हैं, फिर भी मंजूरी अली खान और एक बच्चा चाहतें हैं,

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उनकी पहली बेगम 6 बच्चो को जन्म देने के बाद, चल बसती हैं, इसके बाद मंसूर अली खान अपने से 25 से 30 उम्र से छोटी एक लड़की से निकाह करतें हैं, जिसका नाम रुखसाना बेगम हैं,

रुखसाना के 5 बच्चे होते हैं, जिसके बाद उनके परिवार में 11 बच्चे और मिया बेगम सहित 14 से ज्यादा सदस्य हैं, बदले हालात को देखकर परिवार का पालनपोषण एक बड़ी समस्या को जन्म देती हैं, मगर फिर भी मंसूर अली खान एक और बच्चा चाहते हैं , और रुकसाना और एक बार प्रेगनेंट होती हैं, मंसूरी खान को बड़ा गर्व महसूस होता हैं यह कहते हुए,
म दो और हमारे बारह,

यही नहीं ,फिल्म में दिखाया गया हैं की अली खान न तो खुद कभी पढ़े लिखे और न हीं कभी उन्होंने अपने बच्चों को किसी स्कूल कॉलेज भेजा, उन्हे एक कट्टर इस्लामी दिखाया गया हैं, जो पूरी तरह खुद को सच्चा मुसलमान मानते हैं।
तलब की अली खान ने खुद ही इस्लाम की व्याख्या की जीने किं कसम खाई हैं, ऐसा दिखाया गया हैं।

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लेकिन फिल्म में ऐसा भी समय आता हैं, जब रुखसाना और उसकी सौतेली बेटी अपने अधिकार के लिएं आवाज बुलंद करतीं हैं, और उन्हें कितनी मुसीबतों का सामना करना पड़ता हैं,यह दिखाया गया हैं।

मतलब की संविधान में सभी महिलाओ के लिए समान कानून बनाए हैं,ताकि वह भी समाज में गरिमा पूर्ण जीवन जी सके ।

फिल्म में एक अलग मोड़ तब आता हैं, जब एक लेडी डॉक्टर कहती हैं, रुखसाना का।गर्भपात कराना होगा ,नही तो उसकी जान जा सकतीं हैं, मगर मंसूर अली खान इस बात का विरोध करतें हैं, तब रुखसाना की बेटी अपनी सौतेली मां को बचाने के लिए लखनऊ हाई कोर्ट में मुकदमा दायर करती हैं, ताकि रुकसाना को गर्भपात का अधिकार मिले और उसकी जान बचाई जा सके।

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कोर्ट में मुकदमा दर्ज होने के बाद , परिवार में काफी भयानक घटनाएं शुरू हो जाती हैं, जैसे की रुखसाना और उसकी बेटा बेटी के साथ मारपीट, उन्हे शारीरिक और मानसिक यातनाएं देना, इसके पीछे समाज में मौजुद धार्मिक कट्टरता को दिखाया गया हैं और घर के प्रमुख लोगो की अनैतिक सोच को भी दिखाया गया हैं।

कुछ लोगो ने अपने मर्जी से इस्लाम की व्याख्या की हैं, जो सिर्फ उनके फायदे को दर्शाती हैं, न की समाज रह रहे मासूम परिवारों पर महिलाओ से उन्हें कुछ हमदर्दी हैं,
फिल्म को बहुत अच्छी तरीके से निर्देशित किया गया है, किसी भी धर्म को बिना किसी प्रकार से ठेंस पहुचाये बिना , फिल्म की कहानी लिखी गई हैं, जिसे एक परिवार की सामाजिक आर्थिक स्थिती को दर्शाते हुये, फिल्म मे दिखाया गया है.

 

मारे बाराह फिल्म के स्टार कास्ट?
अन्नू कपूर
मनोज जोशी

कौन हैं हमारे बारह फिल्म के डायरेक्टर?

कमल चंद्रा

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