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कतर से लौटे भारतीय नौ सेना के जवान, लगने वाली थी फांसी, विदेश मंत्रालय की कूटनीति से बची जान?

कतर से लौटे भारतीय नौ सेना के जवान लगने वाली थी फांसी विदेश मंत्रालय की कूटनीति से बची जान1

दुनियां की बेहतरीन और सबसे पावरफुल नौ सेना की बात करे तो भारतीय सेना शामिल हैं, भारतीय समंदर में कोई परिंदा भारत की इज़ाजत के बिना पर नही मार सकता, भटकना तो दूर की बात हैं। लेकीन कतर ने कुछ दिनो पहले भारतीय नौ सेना के रिटायर्ड फौजी को फांसी की सजा सुनाई थी, रिहा हुए पूर्व सैनिकों में कैप्टन नवतेज गिल और सौरभ वशिष्ठ, कमांडर पूर्णेंदु तिवारी, अमित नागपाल, एसके गुप्ता, बीके वर्मा और सुगुनाकर पकाला और नाविक रागेश शामिल हैं। लेकिन भारत की सूज बुझ की वजह से आज वह अपने देश लौट आए हैं। जिसके लिए उन्होंने भारत सरकार का अभिवादन किया हैं, और विदेश मंत्री श्री एस जयशंकर का भी आभार मान रहे हैं।

आखिर क्या हैं कतर और भारतीय जवानों से जुड़ा मामला ?

दरअसल यह भारतीय कमांडर रिटायर्ड फौजी हैं, इसलिए यह लोग कतर के  एक प्राइवेट कंपनी में काम करने लगे, यह कम्पनी कतर के नौ सैनिक की हैं, जहा ऑफिसर्स को ट्रेनिंग दी जाती हैं।

कतर ने इन भारतीय पर इजराइल के लिए जासूसी करने का आरोप लगाया है लेकिन कोई भी सबूत कतर की ओर से पेश नही किया गया ,इस पर भारत के पीएम श्रीं नरेंद्र मोदी द्वारा कड़ी कार्रवाई की गई। और भारत का यह एक्शन कतर को बहुत भारी पड़ा।

अब आपको कतर की असलियत से रूबरू करवाते हैं.

कतर वह जरहीला सांप हैं जिसने भारत के खिलाफ कही बार ज़हर उगला है, UN में कश्मीर का मुद्दा उठाना हो, डोकलाम में चीन का साथ देना हो, 370 पर पाकिस्तान के साथ खड़े रहना हों, और अभी कुछ दिनों पहले भारतीय नौ सेना कमांडर पर इल्जाम लगाना. कतर कैसे न कैसे भारत का विरोध हमेशा करता रहता हैं।

यही नहीं इजराइल और हमास के बीच आग लगाने का पहला श्रेय कतर को जाता हैं, पीछले कुछ सालों से भारत के साथ यूएई और सऊदी अरब से भारत के रिश्ते काफी मजबूत बने हैं, चाहे व्यापार हो याफिर सांस्कृतिक हों, इस बात को देखकर हमेशा कतर के पेट में दुखता हैं, और UN से लेकर कही विदेशी मुद्दों को लेकर कतर हमेशा भारत के विरोधी की सूची में पहले स्थान पर है।

किसी भीं देश में अगर किसी विदेशी लोगो को लेकर कोई कार्यवाई होती हैं तो, उस देश के विदेश मंत्रालय के साथ बातचीत होती हैं, लेकीन कतर ने ऐसा कुछ किया ही नहीं, कतर के अफसरों ने भारतीय दूतावास से किसी भी प्रकार की कोई बैठक नहीं की, और यहां कतर मात खा गया। साथ ही भारतीय दूतावास के अधिकारी को कैदी बने भारतीय जवानों से मिलने भी नहीं दिया, अब इस बात का जवाब कतर को अंतर राष्ट्रीय न्यायालय में देना था, अब भारत को समझ में आ गया की कतर को उसी की भाषा में समझना जरूरी हैं और भारतीय दूतावास की कूटनीति ने यह कारनामा कर दिखाया।

पहले तो भारत सरकार ने 4 तरिके से कतर ने समझना चाहा

1. सजा के विरोध में अपील
2. राजनितिक स्तर पर वार्तालाप
3. आंतर राष्ट्रीय स्तर पर सभी देशों का सहयोग प्राप्त करना
4 . शिखर बैठकें करना.

अगर इस से बात नहीं बनी तो, भारत के सफ़र “नई दिल्ली से द हेग”तक जाएगा, मतलब की इंटरनैशनल कार्ट में भारत अपना कदम रखेगा। और इस बार भारत का कदम कतर को चारों  खाने चित्त करके रखेगा और हुआ भी ठीक वैसे ही जैसे भारत ने सोचा।

कतर कोई दूध का धुला देश नही हैं, हमेशा भारत के विरोध में रहा हैं, इजराइल पर आतंकी हमले करने वाले आतंकवादी ज्यादातर कतर में ही रहते हैं, यहा तक की अफगानिस्तान में जब यूएसए की सेना थी, तब तालिबानी संघठन का हेड ऑफिस कतर के दोआ में था।

भारत का एक्शन सबसे पहले कतर के कोर्ट पर हुआ, कतर में एक व्यवस्था हैं की निचली अदालत के फैसले को उच्च न्यायालय में चुनौती दी जा सकती हैं,पर उच्च न्यायालय इस पर एक्शन ले सकता हैं, भारत से पहले भी कतर ने फिलिपिंस के दो मजदूर को फांसी की सजा सुनाई थीं,लेकिन बाद में इसे उम्रकैद में बदल दिया गया, इन पर भी कतर ने जासूसी का इल्जाम लगाया था,

2020 में भी नेपाल के एक व्यक्ति को फांसी दी गईं थी, लेकिन इस बार कतर ने भारत को हल्के में लेकर खुद के लिए बड़ी मुश्किल खड़ी कर दी, और हाल फिलहाल में भारत के कमांडर सही सलामत अपने वतन लौट आए हैं।

भारत कतर के रिश्ते अगर सुधारना हैं तो इसके लिए व्यापार से अच्छा कोई और उपाय नहीं है, कतर से भारत का व्यापार कुछ सालो में बढ़ा है।

भारत क्या क्या निर्यात करता हैं कतर को?

भारत से कतर में सब्जियां, फल, गेहूं बढ़ी मात्रा में भेजा जाता हैं, और भी कई उत्पाद भारत से कतर जाते हैं। 2017 – 2018 में भारत ने कतर की मदद की थी , जब कतर भूखा मर रहा था, तब भारत से ही अनाज की पहली खेप पहुंची थी, इस अहसान को कतर भूल गया, जब अरब देशों ने कतर के खिलाफ नाकाबंदी की थी तब , कतर का खाना पीना , सब बंद होने की कगार पर था,तब भारत ने समंदर के रास्ते भारत कतर एक्सप्रेस सेवा शुरू की थी,और कतर को अनाज भेजा था।

लेकिन कतर वो देश हैं , जो केवल मौके की तलाश में रहता हैं की वह कब भारत के विरोध में खड़ा रहे और पकिस्तान का साथ दे, अभी तो चीन के साथ भी कतर की नजदीकियां बढ़ गई है।

एक तरफ कतर भारत के गुणगान भी गाता हैं, तो दूसरी तरफ ज़ाकिर हुसैन का खयाल भी रखता है, अमरीकी फौज की मदद लेता हैं,लेकिन ईरान के साथ दोस्ती भी रखता हैं। ऐसे में कतर दोस्ती और विश्वास के बिलकुल भी लायक नहीं हैं, केवल व्यापार के लिए ही कतर से संबध रखना उचित है, भारत को कतर पर अंधा विश्वास नहीं रखना चाहिए।

 

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