ज्ञानवापी परिसर में ASI को ऐसा क्या मिला की देखते रह गया हिंदू पक्ष, क्यू खुश हैं मुस्लिम पक्ष कोर्ट के फैसले को लेकर ।

ज्ञानवापी परिसर आजकल सुर्खियों का विषय बन गया हैं , क्युकी पिछले 31 साल से व्यास परिवार श्रृंगार गौरी माता की पूजा करने के लिए दिन रात इंतजार कर रहा था , हाल फिलहाल में जिला न्यायालय ने श्रृंगार गौरी माता की पूजा करने का अधिकार वापस हिन्दू पक्ष को दिया हैं , पिछले 31 साल पहले भी वहा व्यास परिवार श्रृंगार गौरी माता की पूजा करता था, लेकिन कुछ राजनितिक पार्टी की वजह से उन्हें अपनी सालो की पूजा अर्चना को बाहर से करना पड़ता था,

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श्री राम मंदिर निर्माण के बाद अब काशी में भी हिंदुओ ने अपनी आवाज बुलंद की हैं, सालो पुराना जय जय कार अब वापस काशी में गूंज उठा हैं, तमाम सबूत और याचिका के बाद अब काशी विश्वेश्वर मंदिर के लिए हिंदू पक्ष अपनी तमाम दलीलें और सबूत पेश कर रहा हैं, जिसके लिए ASI की टीम खोजबीन शुरू कर दी थी।

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अयोध्या के साथ साथ काशी, मथुरा में मन्दिर के लिए कई दशकों से हिंदू समर्थकों ने अपना दम खम दिखाया है, न्याय के लिए हिन्दू पक्ष ने कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है ताकि उन्हें न्याय मिले , लेकिन यह मामला दिखने में सरल हैं लेकिन उतना ही पेचीदा हैं, एक तरफ हिंदू अपना हक बताते हुए कोर्ट के सामने सबूत पेश कर रहा हैं, तो दूसरी तरफ मुस्लिम पक्ष, मौजूद ढांचे को लेकर अपना दावा ठोक रहा हैं, मुस्लिम पक्ष प्लेस ऑफ़ बर्शिप्ट एक्ट का हवाला दे रहा है, लेकिन कोर्ट का कहना हैं की यह मामला कानून बनने के पहले का हैं, तो काशी में यह कानून निष्फल हैं।

अयोध्या के बाद अब महादेव की नगरी काशी में शंख नाद शुरू हो गया हैं, जिला कोर्ट ने खंडित परिसर में मौजूद माता श्रृंगार गौरी की पूजा का अधिकार हिंदु पक्ष को दिया हैं, जहा पूजा अर्चना ब्रम्हामुहर्त में शुरू हो गई हैं और इसकी तस्वीर सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर वायरल हो गई हैं।

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ASI की टीम को क्या मिला ज्ञानवापी तहखाने के अंदर जिसे देखकर अचंबित हुए दोनो पक्ष?

अभी कुछ महीनों पहले जो सर्वे हुआ , इससे पहले भी कही बार। ASI की टीम ने विवादित ढांचे के अंदर सर्वे किया था, us वक्त भी चर्चा थी की वहा कुछ खंडित कला कृतियां मिली हैं, जो मंदिर में मौजूद रहती हैं, साथ ही मंदिर पश्चिमी दीवार भी मंदिर होने का ऐलान करती हैं, लेकिन मुस्लिम पक्ष हमेशा इस विवाद को लेकर असहमत रहता हैं, इसकी वजह से हिंदु पक्ष ने कोर्ट से अपील की ,अब न्याय केवल न्यायालय के तर्ज पर ही होगा, पिछले 350 सालो से यह मामला सुलझने का नाम नही ले रहा था,

इसके पीछे कई वजह हो सकती हैं, लेकीन फिलहाल ज्ञानवापी तहखाने में कही ऐसी चीजे मिली हैं, जो सबको हैरान कर देगी।

ASI सर्वे की टीम के साथ साथ हिंदु पक्ष और मुस्लिम पक्ष भी सर्वे टीम के साथ मौजूदा तहखाने में गई तो उन्हे वहा पर कुछ खंडित मूर्तियां मिली, कुछ पुराने स्तंभ दिखे ,जो की कलश, त्रिशूल ,और कमल से सजे हैं, उनपर वैसे ही नक्काशी की गई है जैसे कि मंदिर में होती हैं, साथ ही कुछ शिलालेख भी मिले हैं जो कन्नड़, तमिल तेलुगु, और संस्कृत भाषा में हैं, जिन्हे तहखाने में मौजूद दीवारों पर उखेरा गया हैं।

मैसूर के ASI सर्वे टीम को ज्ञानवापी तहखाने के अंदर दीवारों पर कन्नड़ देवनागरी में कुछ शिलालेख मिले हैं, जिसमे मंदिर तोड़ने का उल्लेख बताया गया हैं, कुछ मीडिया रिपोर्ट्स का कहना हैं की कोर्ट में भी यह साबित पेश किए गए हैं, की वहा 50 से ज्यादा हिन्दू धर्म से संबंधित खंडित कला कृतियां मिली हैं ,जिसमे से चार शिलालेख कन्नड़ भाषा में हैं जो न्यायालय में सबूत के तौर पर पेश किए गए हैं।

 

क्या औरंगजेब के पहले भी तोड़ा गया था काशी विश्वेश्वर मंदिर ?

इतिहास में कई ऐसी बाते हैं, जो शायद लोगो से छुपाई गई हैं, इसकी वजह राजनीति हो सकता है और कुछ निजी स्वार्थ भी , शायद इसी वजह से आज भारत के इतिहास को लेकर नए नए तत्थ सामने आ रहे हैं, चाहे भारत की अमूल विरासत हो याफिर स्वर्णिम इतिहास।

भारत का इतिहास कही तरह से बदला गया हैं, कई लोग इसकी वजह कुछ चाटुकार इतिहासकारो को मानते हैं , लेकिन इसके पीछे कुछ राजनितिक स्वार्थ भी हैं।

कौन हैं नारायण भटलू और मल्लना भटलू जिनका नाम ज्ञानवापी शिलालेख में मिला हैं?

मौजूदा तहखाने में कन्नड़ भाषा में कुछ शिलालेख मिले जिसमे एक नाम बार बार मीडिया में छाया हैं वो नाम है नारायण भटलू और उनके पुत्र मल्लाना भटलु, कहा जाता है की यह वो दो व्यक्ति हैं जो काशी विश्वेश्वर मंदिर की बनावट के समय मौजूद थे , इन दोनो का नाम ज्ञानवापी तहखाने में मौजूद कन्नड़ शिलालेख में मिला है, यह दोनों दक्षिण भारत के प्रसिद्ध ब्राम्हण थे।

लेकिन इस शिलालेख में एक और खास बात हैं की क्या औरंगजेब के पहले भी काशी का मंदिर तोड़ा गया था?

ASI निर्देशक मुनिरत्नम रेड्डी की सर्वे टीम ने एक रिपोर्ट अदालत में पेश की , जिसमे दक्षिण भारत के दो व्यक्ति का उल्लेख हैं जिनके नाम मौजूदा तहखाने के ढांचे में मिले कन्नड़ शिलालेख में उल्लेखित है।

जिसमे 15 वाक्य का एक सारांश हैं, वैसे तो ASI सर्वे टीम को 35 शिलालेख मिले हैं लेकिन इसमें से सबसे ज्यादा चर्चा में रहा हैं कन्नड़ भाषा के तीन शिलालेख जिसमे काशी का इतिहास बताया गया हैं।

ASI निर्देशक का कहना हैं की कन्नड़ भाषा का शिलालेख में जो दो नाम उल्लेखित हैं , पहला नारायण भटलू, यह एक तेलुगू ब्राम्हण थे जिन्होंने काशी में मौजूद मंदिर का वर्णन किया हैं, उन्होंने मंदिर निर्माण को लेकर देखरेख का काम किया था जो की 1585 में हो रहा था, हो सकता हैं की, उनके पहले से मौजूद मंदिर विस्तार को लेकर काम चल रहा हो, क्युकी वहा मंदिर हजारों सालों से मौजूद था, क्युकी पुराणों और वेदों में काशी ज्योतिर्लिंग को बहुत मान्यता हैं, अगर वेद पुराण हजारों साल पुराने हैं तो मंदिर भी काफी पुराना है।

कन्नड़ शिलालेख में जौनपुर के हुसैन शर्की सुलतान का नाम उल्लेखित हैं जिस ने काशी विश्वेश्वर मंदिर तोड़ने का आदेश दिया था ,जिसने अपना शासन 1458 से 1506 तक किया था, उसने मंदिर तोड़ने का आदेश दिया लेकिन पूरी तरह से तोड़ नही पाया ,और मंदिर का जो हिस्सा क्षतिगस्त हुआ,उसका काम पंडित नारायण भटलू और उनके पुत्र मल्लन भटलु ने देखा और इस बात का जिक्र इस उल्लेख में स्पष्ट रूप से मौजूद हैं।

1585 में मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया गया जो राजा टोडरमल ने किया था, मंदिर की देखरेख के लिए राजा टोडरमल ने दक्षिण से ब्राम्हण नारायण भटलू को निमंत्रण भेजा और उन्हें दक्षिण से वाराणसी बुलाया, तब नारायण भटलू के साथ उनके पुत्र मल्लन भटलू भी कुछ समय बाद तेलुगू राज्य से काशी पधारे और मंदिर की देखरेख करने लगे। और इनके ही देखरेख में मंदिर का पुनर्निर्माण किया गया।

ज्ञानवापी तहखाने में मिले शिलालेख में नारायण और उनके पुत्र मल्लाणा भटलू का उल्लेख है जो 14 वाक्य में उकेरा गया हैं। 35 शिलालेख को देखते हुए लगता हैं की काशी में मौजूद विश्वेश्वर मंदिर का इतिहास और इतिहासकार ऐसे है जो इतिहास में गुम हो चुके हैं।

 

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कन्नड़ संस्कृत के अलाव अन्य भारतीय भाषाओं में भी मिले शिलालेख ?

ASI सर्वे टीम को 30 से 40 शीलालेख मिले हैं ,जो ज्ञानवापी तहखाने में मौजूद हैं, कई ऐसे हैं जो पढ़ने योग्य नहीं हैं , जो क्षतिगस्त हुए हैं लेकिन कुछ शिलालेख अभी भी कायम हैं, कन्नड़ , संस्कृत के साथ साथ तमिल,तेलुगु में भी शिलालेख मिले हैं जिसे ASI सर्वे टीम ने सबूत के तौर पर पेश किया है

ज्ञानवापी तहखाने के अंदर कई सबूत मिले हैं जो कहता हैं की वहा मंदिर ही था , जिसको ध्वस्त करने के बाद मंदिरों के दीवारों पर ही आतंकवादी औरंगजेब ने गुम्मद बनाया और मंदिर को मस्ज़िद का नाम दिया,

काशी विश्वेश्वर मंदिर में अन्य सात मंदिर थे , गर्भगृह में भगवान विश्वेश्वर विराजमान थे , बाकी मन्दिर परिसर में गुरुकुल था, जहा शिक्षा दी जाती, मंदिर परिसर में अभी केवल माता श्रृंगार गौरी का ही मंदिर हैं जो पश्चिम की ओर हैं।

यह वही पश्चिमी दीवार हैं ,जो चीख चीख कर कह रही है, की वहा मंदिर था, और औरंगजेब ने इसी लिए इस दीवार को वैसा ही रहने दिया ताकि हर भारत का हिंदू इस दीवार को देखे और खुद को कायर समझे , की उनके ही देश में , उनके ही जमीन पर बाहरी लोगो ने राज किया और उनकी धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाई।

फिलहाल सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर ज्ञानवापी तहखाने में मिले मूर्तियों की तस्वीरे वायरल हो रही है, जिसमे शिलालेख भी हैं और कुछ खंडित कला कृतियां भी।

हिंदू समर्थकों के वकील श्री विष्णु जैन ने Asi की रिपोर्ट को मीडिया के सामने प्रस्तुत की ,जिसमे कुछ जानकारी उन्होंने सांझा की।

हाल ही में विवादित ढांचा के अंदर व्यास परिवार को पूजा करने का अधिकार मिल गया हैं, और वहा 31 साल बाद पूजा शुरू हों गई हैं, यह वही व्यास परिवार हैं जिनके पूर्वज कई शतकों से श्रृंगार गौरी माता की पूजा करते आ रहा हैं। लेकिन आज जिला कोर्ट ने व्यास परिवार को उनका धार्मिक अधिकार देकर धार्मिक भावनाओं का सम्मान किया।

 

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