Chandrayaan 3 : चंद्रयान ३ : चाँद के बारे में खास बाते जो आप नहीं शयद् नहीं जानते होंगे ? चाँद पर क्या मिला ?

स्पेस में जाने के लिए आज सबमें रेस लग गई हैं। चाहे बड़े से बड़ा देश हो  या फिर छोटे से छोटा देश हों, लेकिन किसी ने सोचा नहीं था, की साउथ  पोल पे भारत सबसे पहले जाएगा , कइ  देशों ने भारत से पहले वहा अपने अपने रोवर भेजने की कोशिश की  मगर असफल रहे, वही चंद्रयान 3 की सफलता के साथ भारत का परचम लहराया चांद के उस हिस्से में जहा कोई सोना ना होगा ।

उसी के साथ रूस का लुनर भीं था चंद्रयान की रेस मे मगर उसको असफलता से ही काम चलाना पड़ा  और सबकी नजर थी चंद्रयान 3 पर और सबकी आंखों में बस तिरंगा ही छप चुका था । और परीणाम सफल साबित हुआ, हमने सॉफ्ट लैंडिंग किया साउथ पोल पर  ,

चाँद का साउथ पोल क्यों बहुत ही  रहस्यमयी है ?

चांद का यह हिस्सा अंधेरे में रहता हैं, यया  का जो सरफेस हैं वो सपाट नहीं हैं जैसे की बाकी हिस्सा का स्ट्रक्चर हैं , साउथ पोल पर बड़े बड़े खड्डे हैं , जो ज्वालामुखी जैसे  विशाल हैं , ऐसी तस्वीरें इसरो को मिल  हैं, जिससे यह अनुमान लगाया जा सकता है की क्यों चाँद के साउथ पोल के तरफ कोई भी मिशन सफल नहीं हुआ अभी तक , बहुत सरे देश इस मिशन पर काम किये लेकिन  सफल भारत ही हुआ है ,

 

जीतने भी देश अभी तक चंद पर गए हैं वो सिर्फ चंद के सपाट भाग पे ही land हुए हैं, लेकिन भारत दुनिया का पहला देश हैं जो साउथ पोल याने डार्क side of moon पैर  लैंड हुआ हैं। चांद का यह South पोल , 250000 km चौड़ा, और 8km गहरे गड्ढे के पास मौजूद हैं। जिसे हमारे आकाशगंगा का सबसे पुराना  क्रिएटर माना जाता हैं, ऐसे क्रिएटर बड़े बडे उल्का पिंड के टकरा ने से बनते हैं।

Chnandrayaan 3 के सफल लैंडिंग से नासा ने क्या कहा ?

नासा के  प्रॉजेक्ट  साइंटिस्ट “नोआ पेट्रो”  के अनुसार  भारत का चंद्रयान  ऐसी जगह पहुंचा हैं  जहा उल्का के गहरे गड्ढे हैं । यहाँ यान को उतरा लगभग ना के बराबर उम्मीद होती है , इसरो के इस प्रयास को देखते हुए नासा के वैज्ञानिको ने भारत जे इसरो के साथ बहुत सारे स्पेस प्रोजेक्ट में काम करने की इच्छा जताई है

ऐसा क्या है चान के दक्षिरी ध्रुव पर ?

दक्षिण ध्रुव पर सूर्य बहुत  उपर से निकलता हैं तो यहाँ  दिन में तापमान  लगभग 55 डिग्री सेल्सियस तक जाता हैं, लेकिन  इस हिस्से में इतने ऊंचे पर्वत श्रृंखला और ज्वालामुखी हैं , जो सूरज की रोशनी की इस हिस्से पर पड़ने ही नहीं देती, इसलिए यह हिस्सा अंधेरे में रहता हैं।  पर्वतों की height 7500 मीटर से भी ज़्यादा हैं , जब इनकी परछाई चांद पर पड़ती हैं तो यहा  का तापमान  लगभग -203 degree से -245 degree जाता हैं।

वैज्ञानिको ने चाँद के South pole को ही क्यों चुना ?

सबसे पहला चैलेंज तो यह हैं की इस हिस्से की जमीन  गड्ढों से भरी पड़ी हैं , यहा  रोवर चलाना मतलब किसी भरी भरकम ट्रेन की सीधे पानी पर चलाना , लेकिन वैज्ञानिको को ऐसे चैलेंज एक्सेप्ट करना अच्छा लगता हैं। वैज्ञानिको का मानना एसा है की इस हिस्से में उन्हें बहुत कुछ मिल सकता है , जिससे उन्हें स्पेस स्टडी करने में आसानी हो सकती है , यहा  गहरे गड्ढों के साथ साथ  वायु का घेराव हैं  हाइड्रोजन और हीलियम का  भी ,  यहा  पर सतह का परीक्षण करना सबसे मुश्किल काम हैं , जो अभी इसरो करेगा , क्युकी हमारा लैंडर प्रज्ञान चांद पर पहुंच गया हैं।

अब पानी की  खोज को लेकर चीन, भारत और  जापान तीनों रेस में हैं , अब  बजी कौन मारेगा यह आने वाले समय बताएगा , दक्षिण ध्रुव पर तो भारत का नाम छप चुका हैं पर अन्य हिस्सों पर जाने के लिए अब यह तीनों देश आमने सामने हैं। 2019 में चीन ने  चांद की न दिखने वाली साइड पर अपना रोवर उतारा हैं , जिसका  नाम हैं “चांगेय 4”  लेकिन भारत चंद्रयान 3 के सफलता के बाद  चंद्रयान 4 के  तैयारी में लग जाएगा । मतलब की चांद पर competition बढ़ गया हैं।

इंडिया और जापान ने  मिलकर ज्वाइंट प्रोजेक्ट पर काम कर रहा हैं “मतलब की ज्वाइंट पोलार एक्सप्लोरेशन मिशन
जिसका टारगेट हैं चांद के डार्क साइड के बारे में इन्फॉर्मेशन हासिल करना।

सभी देश चांद पर इतनी रिसर्च क्यू  कर रहे ?

बढाती हुई टेक्नोलॉजी  और जिज्ञासा के साथ सभी देश चाँद पर रिसर्च करने में लहए है , इसी के साथ नासा का अनुमान हैं की चांद के गड्ढों में बर्फ भी ही सकती हैं, जिसका पता लगाने के लिए नासा प्रयास कर रहा हैं , मगर उसको  चांद के डार्क साइड पे जाना होगा और रोशनी जिस साइड हैं वहा इतने बढ़े गड्ढे नहीं हैं, जीतने भी जो कुछ है वों  डार्क यानी साउथ पोल पे हैं,। ऐसा अनुमान नासा का लूनर  रिकंसास ऑर्बिटर का रिसर्च हैं जो  चांद के उजाले वाले हिस्से पर गया था।

यह ऑर्बिटर पिछले 14 साल से चांद की और परिक्रमा कर रहा हैं , जिससे मिली इनफार्मेशन के तहत नासा का अनुमान हैं की यह बर्फ अगर हुई तो इंसानो  को यहा  भेजने के  रास्ते खुल जायेंगे , मतलब की पानी मिलाने की आशंका  माना जाएगा। चांद पर ग्रेविटी नहीं हैं, तो पानी यहा  स्टोर हो सकता हैं, बर्फ के रूप में।

चंद्रयान १ से क्या रिसर्च हुआ था ?

आपको जानकर गर्व होगा को , भारत का चंद्रयान 1 ने 2008 में चांद पर पानी होने का सबूत पेश किया था । वैज्ञानीको को चांद पर पानी मिलने की उम्मीद हैं क्युकी , चांद पर बर्फ जैसी परत चढ़ती जा रही हैं ,वो भी लाखों सालो से ,इस तरह का अनुमान हैं की , यह पानी की परत के  रूप में जमा होगी , अगर यह का सैंपल हमे मिल जाए तो , यह बर्फ हैं की नहीं, इसका पता लगाया जा सकता हैं,। जो अभी तक पॉसिबल नहीं हो पाया है। इससे हमे सौर मंडल में पानी के उत्पति का भी पता लगेगा।

चाँद पर पानी मिलाने के आशंका और मानव जीवन बसाने की  तैयारी ?

चांद पर जाने की रेस में , दुनिया भर की स्पेस एजेंसी अब इंसानी को चांद पर भेजना चाहती हैं, और बाकी के प्लेनेट्स पर भी  पाणी हमारा जीवन हैं , जिसके बिना रहना मुश्किल हैं, तो चांद पर अगर पानी मिल जाए तो हम वहा आसानी से रह सकते हैं, क्युकी पृथ्वी से वहा पानी लेकर जाना मतलब की मिलियन ओस डॉलर का खर्चा होना , जो बड़ा ही महंगा साबित होता हैं। अगर पानी हैं तो क्या वो पीने लायक हैं इसका पता लगाना जरूरी हैं , यह जो बर्फ की जैसा दिखता है, अभी तक पता नहीं चल पाया की , यह क्या  ही सकता हैं बर्फ  या पानी । इन सारे सवालों के जवाब स्पेस रिसर्च के सामने डाल बनकर खड़े हैं , जिसका जवाब ढूंढने में वैज्ञानिक दिन रात मेहनत कर रहे हैं।

 

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