नवरात्रि के पर्व 7 वे दिन माता दुर्गा की सातवीं शक्ति कालरात्रि मतलब की माता काली की पूजा की जाती हैं , माता का यह स्वरूप दानवी राक्षसों का संहार करने के लिए जाना जाता हैं अति क्रोध की वजह से उनका वर्ण काला पड़ जाता हैं इसलिए इन्हे माता काली के नाम से पूजन होता हैं।
माता पार्वती का यह स्वरूप शुंभ निशुंभ और रक्तबीज जैसे राक्षसी दानवो से श्रृष्टि को बचाने के लिए माता पार्वती ने धारण। किया था।
कैसे करे माता कालरात्रि का पूजन ?
स्नान करके शुद्ध गंगा जल से माता का जलाभिषेक करे, माता को शहद अर्पण करने कभी रिवाज है, देवी को लाला रंग का वस्त्र अर्पण करे और पूजन के समय लाल। वस्त्र धारण करने के बाद ही पूजा किं शुरूवात करे। पूजा की थाली में लाला पुष्प जरूर रखे ,
माता कालरात्रि का महत्त्व क्या हैं?
जैसे कालो के काल महाकाल प्रसिद्ध हैं वैसे ही माता का यह स्वरूप भी काली नाम से विख्यात हैं जो काल से आपको सुरक्षित रखती हैं।
नवरात्रि के सातवे दिन का शुभ रंग क्या हैं?
लाल रंग माता काली को बहुत पसंद है।
सातवे दिन कौनसा भोग लगाएं?
महाकाली को गुढ़ और शहद का भोग लगाएं।
कालरात्रि स्वरूप कैसे विख्यात हुआ ?
जब शुंभ निशुंभ और रक्तबीज जैसे राक्षसो ने अन्याय की सीमा लांघ दी तो सभी देवता भगवान शिव के पास जाते हैं उन से मदद मांगते हैं तब भगवान शिव उन्हे भगवती दुर्गा की प्रार्थना करने का उपाय बताते है , देवता वैसे ही करते हैं।
जब देवी पार्वती का दिव्य स्वरूप दुर्गा अवतरित होता हैं तो शुंभ निशुंभ का वध करके देवता गण का खोया सम्मान वापस दिलाती हैं। लेकिन रक्तबीज का सामना करने के लिए माता पार्वती का दिव्य रूप कालरात्रिब प्रकट होता हैं और क्तबीज के एक एक रक्त बूंद को ग्रहण करती हैं और ऐसे करते करते माता रक्तबीज का संहार करती हैं। लेकिन उसके बाद उनका शरीर क्रोध से काला पड़ जाता हैं और यह रूप महाकाली नाम से विख्यात हों जाता हैं।
नवरात्रि के सातवे दिन पूजा करने से शत्रु पर विजय हासिल करने का वर्णन पुराणों में मिलता हैं ,देवी का यह रूप शक्ति और सफलता का प्रतीक है।